हिम्म्त नंही है मुझ् मे
हिम्म्त नंही है मुझ् मे तेरे सामने आने की,
तेरे सामने आकर तूझ से नज्ररे मिलाने की
घबरा जाता है साहस मेरा भी, तेरे सामने आकर
उड जाते है रगं मेरे, तुझे को आस पास पाकर
करता हुँ फरियाद खुदा से मेँ तुझ को पाने की
हिम्म्त नंही है मुझ् मे तेरे सामने आने की,
तेरे सामने आकर तूझ से नज्ररे मिलाने की
सोचता हुँ बहूत बार,क्या हो जाता है मुझे यार
तुझे से ए हसीन क्यो है मुझे प्यार
क्यो करता हुँ आरजु में तेरे संग समय बिताने की
पर हिम्म्त नंही है मुझ् मे तेरे सामने आने की,
तेरे सामने आकर तूझ से नज्ररे मिलाने की
ए हसीन तू ही बता, इजहारे म्होब्बत से होता है क्या
मेरी यह कविता , सब कुछ कर रही है बयाँ
अब ए हसीन , तू ही मेरे सामने आ ,
मेरे सामने आकर, मुझ से नजरे मिला